‘आज के ब्राह्मण जब भय, चिंता, स्वार्थ में जीते हुए हैं, बिना चिंतन-मनन के हैं ब्राह्मण शास्त्र और शस्त्र दोनों में रीता है और हाथ में वह सिर्फ पूजा की थाली लिए हुए है। कहां ये परशुराम और चाणक्य की वृत्तियां धारे हुए हैं? कैसे वैसे संस्कारित, वैसे क्रोधित हो सकते हैं, जैसे परशुराम और चाणक्य अहंकारी राजा पर हुए थे?”