‘शास्त्र या लोक, अतीत या वर्तमान, देशी या विदेशी साक्ष्य, कहीं भी छुआ-छूत हिन्दू धर्म का अंग होने, या ब्राह्मणों की दुष्टाता का प्रमाण नहीं है।…वैदिक धर्म में ऐसे छुआ-छूत का कोई स्थान नहीं। … अभी तक हम ‘कौआ कान ले गया’ वाली फितरत में दूसरों द्वारा हर निंदा पर अपनी ही छाती पीटने लगते हैं। हमें अपने शास्त्रों को अपनी कसौटी पर देखना चाहिए।‘