गोवर्धन पूजा 2021: दिवाली सप्ताह के अंतिम दिन श्रीकृष्ण के पूज्य गिरिराज भगवान की कथा और पूजा मुहुर्त

गोवर्धन पूजा तारीख – शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – प्रातः 06:40 बजे से 08:50 बजे तक

गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त – दोपहर बाद 15:20 बजे से सायं 17:30 बजे तक

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 02:43 (5 नवंबर 2021) से

प्रतिपदा तिथि समाप्त – 23:14 बजे (5 नवंबर 2021) तक ( govardhan pooja 2021)

दीपावली के अगले दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का दिन है| इसे अन्नकूट भी कहते हैं|  प्रकृति और मनुष्य के रिश्तों के महत्व की पूजा का दिन। इस दिन गोधन याकि गौ माता की पूजा की जाती है| आमतौर पर यह पर्व दीपावली के अगले दिन ही पड़ता है। कभी-कभार दीपावली और गोवर्धन पूजा के दिन में चौबीस घंटों का अंतर आ जाता है|

पूजा विधि

घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धनजी की मूर्ति बनाकर उसको पूजते हैं|  फिर ब्रज देवता भगवान गिरिराज को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाते हैं| गाय- बैल आदि पशुओं को नहला कर, उनका श्रंगार कर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनकी पूजा करते है। आरती उतारी जाती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग व यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल, खाद्य चीजों का भोग लगता है।

गोवर्धन पूजा कथा (govardhan pooja 2021)

यह घटना/मान्यता द्वापर युग की है| ब्रज में इंद्र की पूजा हो रही थी| श्री कृष्ण पहुंचे और उन्होने पूछा कि किसकी पूजा की जा रही है| गोकुल वासियों ने कहा देवराज इंद्र की| तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा इंद्र से हमें विशेष लाभ नहीं होता| वर्षा करना उनका दायित्व है। वे सिर्फ दायित्व को निभाते है जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन का संवर्धन, उसका संरक्षण करता हैं| पर्यावरण शुद्ध होता है| इसलिए इंद्र की नहीं बल्कि गोवर्धन की पूजा होनी चाहिए| उस काल में यमुना नदी धारा बदलती रहती थी। जबकि गोवर्धन पर्वत अपने मूल स्थान पर ही अविचलित थी। गर्ग संहिता में गोवर्धन के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है – गोवर्धन पर्वतों के राजा और हरि के प्रिय हैं| इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में दूसरा कोई तीर्थ नहीं| ( govardhan pooja 2021)

लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पूजा करने लगे| इंद्र गुस्सा हुए। उन्होंने बादलों को आदेश दिया कि जाओं गोकुल में तबाही करों। भारी वर्षा हुई।  सभी भयभीत। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका( सबसे छोटी उंगली)  ऊँगली पर उठाकर लोगों को इंद्र के गुस्से से बचाया| इंद्र को जब मालूम हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं तो वे मुर्खता पर लज्जित हुए और माफी मांगी।  तबसे गोवर्धन पूजा श्रद्धा से मनाने का परंपरा है।

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